ये कैसी भूल-भूलैया
छत्ता छोड़ के बिढ़नी नाचे
घर में ता-ता-थैया
राह चले तो माथा फूटे
घर बैठे तो डाकू लूटे
बह गई बाढ़ में खेती लेकिन
सूखे हैं ताल-तलैया
ये कैसी भूल-भूलैया।
मुल्ला-पांडे सर पर चढ़ गए
धर्म से बाजार भर गए
अमन के नाम पर बांध गए
मेरे खूँटे पर अपनी गैया
ये कैसी भूल-भूलैया।
जल काला है, हवा भी काली
हर कोई देता है गाली
परोपकार के नाम पर केवल
बँटता है भीख रुपैया
ये कैसी भूल-भूलैया।
दारू पी कर बकते साँचे
ज्ञान नहीं पर पुस्तक बाँचे
समझा कर सबको सीधा
ख़ुद चाल चलें अढ़ैया
ये जीवन भूल-भूलैया।
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