अभी-अभी 'डी.आई.डी' (डांस इंडिया डांस) में एक उत्कृष्ट नृत्य का प्रदर्शन करने पर प्रतियोगी की सराहना में बॉलीवुड की फराह ख़ान ने जब ये कहा कि कौन कर सकता है आपके जैसा डांस फिल्मों में, तो उस प्रतियोगी लड़के ने जवाब में कहा -"मैम, जब तक आप हैं, आप जैसों को हमारी ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"
पता नहीं उस नर्तक लड़के का अभिप्राय क्या था, किन्तु मुझे उसमें एक अहम सवाल उठता नज़र आया। मंच पर होती बातचीत से यह पता चला कि वह लड़का (नाम शायद अमरदीप या अमनदीप) लगातार पाँच वर्षों तक इस कुलीन आकर्षण से भरे 'डी.आई.डी' में प्रतियोगी बन कर आता और पहले राउंड में ही निकल जाता। आज उसकी तक़दीर उसे उस जगह ले आयी जो उसको उन दो सह-नर्तक बच्चों (मन और अमित) के कारण मिला जिन्हें वह नृत्य का प्रशिक्षण देता है। सच, है न कितना विडम्बनायुक्त व्यंग्य? लेकिन साथ ही उस विद्रूप सत्य को भी बयान करता है जहाँ अमरदीप जैसे गुणी कलाकार अपनी कला की ऊँचाईं पर पहुँच कर भी उनकी नज़र में नहीं आते जिनको शायद उनकी जरूरत होनी चाहिए। मुझे लगा जैसे अमरदीप फ़रहा खान से कई बातें कह रहा हो। एक कि जब तक आप जैसे लोग हैं और आपके शोषण के तरीके, हम जैसों का उद्धार कैसे होगा? दूसरा, कि आप जैसे लोगों ने बाज़ार को ऐसे घेर रखा है कि उसमें हमें जगह मिले तो कैसे? और तीसरा सवाल एक अनुरोध की तरह पूछता, कि इतना गुणी होने के बाद भी क्या हम जैसों का कोई भविष्य नहीं?
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