Monday, June 25, 2018

पाशविक भ्रम

वो गाय हो या सूअर
बकरी, ऊंट
या फिर मुर्गी या बत्तख
सभी हैं एक खाद्य-चक्र के अंग
सबके जीने या बचने का है अपना-अपना ढंग,
हम इन्हें पालते हैं तो पल जाते हैं
काटते हैं तो कट जाते हैं
मारते हैं तो मर जाते हैं
बिना यह जाने
कि किस धार्मिक या सांस्कृतिक
कारणों के प्रति लिखा था
इनका अंत
गाय न कोई राजनैतिक नारा रंभाती है
न ही बकरी के मिमियाने में होती है
कोई प्रार्थना
सूअर भी हर जाति का गूह खा लेता है
और ऊँट
वशा से बने कूबड़ में 
छुपा लेता है
हर बबूल का चुभता काँटा
मुर्गा अपने ज़िबह होने की सुबह तक
जगाता है बांग दे-दे कर,
भ्रमित तो हमीं हैं
जो पशुधन पर भी
अपनी पाशविकता की छूरी 
या गँड़ासा टिकाए
करते हैं आह्वान 
न जाने किस देव का
या दैविक शक्ति का
जो हमें आदमी से ज़्यादा
दैत्य बनाने पर अड़ा है
आज पशु 
तो कल किसी आदमी को ही 
कटवाने को खड़ा है।
(मृत्युंजय)
13 अप्रैल 2018

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