Monday, June 8, 2020

तुम क्या करोगे अब?

मैं नहीं डरा किसी बीमारी से
बुझ रहे अपने चूल्हे से, बेकारी से

मैं नहीं डरा किसी महामारी से
सब पर छायी लाचारी से

मैं बेघर नहीं हुआ कभी
क्योंकि दूर एक गाँव में मेरा घर है
वहाँ मेरा परिवार बसता है
जिसका हाथ सदा मेरे सर पर है

मुझे नहीं चाहिए कोई गाड़ी
जो मुझे भेड़ों की तरह लाद कर
मुझे मेरे घर पहुंचाए
मेरे घर वाले मुझे देख कर
सदमे से भर जाएँ
और उनका आत्मसम्मान
मुरझा जाए

अपना राशन मैं ख़रीद सकता हूँ
ठीक वैसे ही
जैसे तुम्हारे रास्ते, मकान और उद्योग
हमने ठीक ही बनाए
तुम्हारे दिए अल्प में ही
सम्मान से जी पाए

मैं मेहनतकश हूँ
खट कर कमा सकता हूँ
दाम चाहे जितना भी कम हो
अपना सिक्का जमा सकता हूँ

मैं कोसों पैदल चल सकता हूँ
मिट्टी मेरी अपनी है
हर लोहे को जनने वाली
भट्ठी मेरी अपनी है

संसाधनों को चूस कर
जो बची है संठियाँ
उससे ही मेरा चूल्हा
जहां कहीं भी जल जाता है
मेरा काम चल जाता है

मुझे पता है
तुम फिर बुलाने आओगे मुझे
हर उस काम के लिए
जिससे तुम्हारा बाज़ार बंद पड़ा है

हरसिंगार का मौसम फिर आएगा
फिर खिलेंगे पलाश, तुम्हारी लालच के
और मैं निरंतर सींचती नमी की तरह
तुम्हारे ग़ुलाब भी सीचूँगा
हरसिंगार और पलाश भी,
कैक्टस सब
मेरे साथ ही रहेंगे
क्योंकि उनकी तनाओं में ही
सुरक्षित रहती है मेरी नमी
जो मेरे तन को मरने नहीं देती

तुम बताओ,
तुम क्या करोगे अब? 

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