बुद्ध, तुम्हें अब लोग बेचना चाहते हैं!
क्रियाहीन, भावशून्य, समाधिस्थ
तुम्हारी छवि को 
इन्होंने इश्तेहार बनाया है.
अब तुम भी उपभोग की वस्तुओं की तरह
दुकानों में सजाये जावोगे
या, लोगों के वस्त्र-आभूषण पर चिपके
किसी पब या बार में
नाचते नज़र आवोगे।
तुम्हारे अरूपधातुवाले गुम्बद पर 
नंगा खडा एक तड़ित-चालक
कब तक आकाश से लड़ेगा?
बादलों की आड़ में कब तक
बिजली और विध्वंस से बचेगा? 
बुद्ध, तुम इनको नहीं जानते!
लिंकन, गाँधी, मंडेला
इसा, मूसा और राम,
सबका लगाया है इन्होंने दाम;
किसी तरह बस तुम बचे थे
सम्मान  और संस्कार के अवलेप में
कहीं छूटे, दबे थे ।
या फिर इतिहास ने तुम्हें 
वह स्थान नहीं दिया 
जहाँ वितर्कों का दंगा आम बात है;
चक्र,गदा,तीर
भाले, त्रिशूल लिए सूरमा-वीर
देवी-देवताओं की भी अलग-अलग जात है।
 राम-रहीम, इसा-मूसा की महिमा गाते 
सदियों से एक-दूसरे को उकसाते,
थक गए हैं  अब ये लोग, 
अब इन्हें चाहिए कुछ और;
एक नया मुखौटा 
कुछ नए वितर्कों का दौर।
विश्व की सरकारों ने, इसलिए 
राजनयिकों का एक जत्था 
बोरोबुदुर भेजा है,
साझे में व्यवसाय का 
एक नया तरीका सहेजा है।
'नमो बुद्धाय' का नारा भी
इन्होनें रट लिया है।
टूटती-ढहती आस्था से,
तुम्हारे नाम पर चलती संस्था से,
हर रोज़ तैयार हो जाती है
एक नयी कौम गाईडों की 
जो भूत-प्रेत की लीला-सा बखान करते हैं 
ललितविस्तर और जातक कथाएं,
नए-नए प्रसंगों की
विचित्र विसंगतियां, 
और अद्भुत समतायें। 
पता नहीं कितना और क्या है सत्य
तुमसे जुड़ी इन कथाओं का, 
विश्लेषणों से भरी, रोज़ पकती दुविधाओं का। 
बुद्ध सावधान!
इनकी धृष्टता में
तुम्हारे सत्य से ज्यादा बल है,
इनका व्यापारी आज
तुम्हारे ध्यानी कल से 
ज्यादा सबल है। 
ये घरों में बैठे या, हवा में उड़ते,
दूसरों की ज़मीन पर 
कोहराम मचा सकते हैं।
मानवता की समाधि पर
क़त्ले-आम रचा सकते हैं।
गाँधी की लाठी से
सत्याग्रह को पीट सकते हैं,
द्रौपदी को कुलटा कहकर 
पंचायत में घसीट सकते हैं। 
राजनयिकों का ये जत्था 
हर साल यहाँ आता है,
खाता है, पीता है,
तुमसे जुड़े मूल्यों, और पर्यटन के 
ढेर सारे समसामयिक सपने बुन जाता है। 
तुम्हारी जन्म-जयंती के नाम पर,
तुम्हारे लोगों से छीनकर उनका पारंपरिक उपक्रम, 
आस्था और मोह, 
ये मनाते हैं एक फ़िल्मी समारोह; 
छः देशों के कलाकारों की मिलीभगत से
रचा जाता है एक आकर्षक व्यामोह। 
लेकिन इस सबके पीछे 
अपना हित और वाणिज्य ही आधार है,
गुणाधर्म की किम्वदंतियों -सा फैला 
हर घर में इक बाज़ार है। 
बुद्ध, तुम चकित मत होना !
यदि एक नयी कोंपल-सा फूट आये
तुम्हारा एक नया चेहरा,
जिसे चोली और अंगिया पर टांक कर 
हो जाए तुम्हारा मूल्य दोहरा; 
प्रजातंत्र और पंचशील,
विविधता में एकता की दलील 
से न तो बनी है शान्ति
ना ही बढ़ा है भाईचारा,
लेकिन हो सकता है, भा जाये लोगों को
तुम्हारे नाम की गयी थोथी अपील। 
बुद्ध, हम तुम्हें अब बेचना चाहते हैं! 
            ***************
मृत्युंजय
30.04.2009
जकार्ता
(इंडोनेसिया के योग्यकर्ता शहर से कोई ४०-४५ मिनट की दूरी पर 'बोरोबुदुर' स्तूप बौद्ध धर्मावलम्बियों की  सबसे बड़ी  धार्मिक विरासत है। साथ ही ये एक world Heritage भी है जहां हर रोज़ सैकड़ों-हज़ारों  की संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी और साधारण सैलानी आते हैं। इस स्थान की लोकप्रियता से प्रेरित होकर इन्डोनेसियन सरकार ने इसे पर्यटन - वाणिज्य का एक अच्छा साधन बनाया, और अपने प्रयास को नैतिक मान्यता देने के लिए 'Borobudur  Declaration' नामक 
 
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