मेघदूत
ऐ मेघ! तेरे तन पर जो दिखती
मुझको श्यामल छाया,
तुमने भी क्या विरह में जलकर
पायी ऐसी काया?
या फिर, जगत के दूषण से है
मलिन तुम्हारा जल भी,
रोते नयनों से रिसता है
आँखों का काजल भी!
तुमने भी क्या विरह में जलकर
पायी ऐसी काया?
या फिर, जगत के दूषण से है
मलिन तुम्हारा जल भी,
रोते नयनों से रिसता है
आँखों का काजल भी!
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