नमक की तलाश
ज़मीन पर खेतों की तरह पसरा हमारा कुनबा आसमान से खंदकों में भरा गंदा जल दिखता हैजिसके नंगे, मांसल नितंब को चाटती रहती है
बालू के शरीर वाली
हरा-काला जीभ लपलपाती, नदी।
सभ्यता की जननी को
मानवों की संगिनी को
अब नमक की तलाश है।
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(मृत्युंजय)
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