Tuesday, March 4, 2014

नमक की तलाश

ज़मीन पर 
खेतों की तरह पसरा हमारा कुनबा 
आसमान से 
खंदकों में भरा गंदा जल दिखता है
जिसके नंगे, मांसल नितंब को 
चाटती रहती है 
बालू के शरीर वाली
हरा-काला जीभ लपलपाती, नदी।
सभ्यता की जननी को
मानवों की संगिनी को
अब नमक की तलाश है।
*********************
(मृत्युंजय)

No comments:

Post a Comment