आज फिर तुम्हारा एक ख़त मिला
संदूक के खुरदरे कोने से चिपका
कुछ यतीम, आवारा यादों का सिलसिला।
लफ़्ज़ों में जड़ा प्यार, थोड़ी दानाई,
लिखावट में घबराहट की छाया-सी फैली रोशनाई,
बेतरतीब भावों की कुछ सूखी कलियाँ
इधर-उधर खींची लकीरें
जैसे भरमाये पलकों पर ख़ुमारी की शहतीरें।
भौरों के गुंजन-से लरज़ते हरफ़
पर जमी तुम्हारे छुअन की बरफ
गल कर धीरे-धीरे
मेरे उम्र की नसों में लुढ़क आई है।
(Mrityunjay)
संदूक के खुरदरे कोने से चिपका
कुछ यतीम, आवारा यादों का सिलसिला।
लफ़्ज़ों में जड़ा प्यार, थोड़ी दानाई,
लिखावट में घबराहट की छाया-सी फैली रोशनाई,
बेतरतीब भावों की कुछ सूखी कलियाँ
इधर-उधर खींची लकीरें
जैसे भरमाये पलकों पर ख़ुमारी की शहतीरें।
भौरों के गुंजन-से लरज़ते हरफ़
पर जमी तुम्हारे छुअन की बरफ
गल कर धीरे-धीरे
मेरे उम्र की नसों में लुढ़क आई है।
(Mrityunjay)
kaash ki aise khatt hamlikh paatey...jo koi sahej kar rakhta aur barson baad parh kar ....aankhen nam karta....alas ham toh unn logon mein rah gaye....jinke lkhe harf parh parh kar ab aansoo bhi nahi aatey....
ReplyDeletelikhne ka shok bhi apni ek jarurat ban jati hai,,, apni khamoshi jatani ka ek jariya ban jati hai ,, waqt se ladne mai aapki dhaal ban jati hai,,,
ReplyDeleteawesome poen sir ,,,,