Monday, November 14, 2016

चाँद मेरे क्षितिज का

मेरी छत से सुपर मून / रक्तिम चाँद 



  चाँद,
तू हंस है मेरे क्षितिज का!
सपनों की मेरी फुनगियों पर बैठ
फड़फड़ाता, 
श्वेत अपने गात हिलाता, सबको जगाता!
तू हंस है मेरे क्षितिज का!

कभी हवा, कभी कुहरा, कभी बस 
दिव्य तारों को लपेटे,
चाँदनी में भी अँधेरे का तनिक आभास फेंटे
मेरी दुनिया को तू से सजाता, थोड़ा छुपाता।
सपनों की मेरी फुनगियों पर बैठ
फड़फड़ाता,
तू हंस है मेरे क्षितिज का!

गाँव के पीपल में फँसा 
बरगदों के बीच होकर 
तू पोखर में जा धँसा,
निर्गंध एक सुवास-सी 
उग रहे प्रकाश-सा  
प्रथम प्रेम की लहरियों से सुर मिलाता, मुझको रुलाता। 
मिट रहे गंधों के 
श्वेत अपने गात हिलाता, मुझको जगाता!
तू हंस है मेरे क्षितिज का!




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