Tuesday, September 2, 2014

दिल्लगी में

दिल्लगी में हमने उनका दिल दुखाया है, अपने सच से झूठ का पर्दा उठाया है .
एक किरकिरी जज़्बात की थी कल तलक क़ायम समय ने फूँक कर उसको अभी कल ही उड़ाया है।
बड़ा ज़ख़्मी था यूँ ही दिल हमारा उनकी बातों से किसी ने फिर इसे प्यार का नश्तर चुभाया है।
बड़े मग़रूर होकर हम चले थे जीतने जिसको उसी के आस्ताने पर सर अपना झुकाया है। (मृत्युंजय)

1 comment:

  1. दर्द फिर दिल मेँ उठा है लो सम्भालो मुझको ।
    इक नया जख़्म मिला है लो सम्भालो मुझको ।
    मेरी आंखोँ से ज़ेद जो उठता है धुवाँ ,
    फिर कोई ख़्वाब जला है
    लो सम्भालो मुझको ।

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