हर ओर नीरवता
सरसराते, धींगा-मुश्ती करते
शाख़- पत्ते
रंगों के विनिमय में लगे
फूल
उन सारे, कल के टूटे
दलों को भूल
घाटी में चक्कर काटती
हर दिशा से गुदगुदाती हवा
उनपर लटक कर झूलती
फाहों-सी बादलों की टोली
पक्षियों के वार्तालाप
रह-रह कोई ले रहा आलाप
तितलियों की अठखेली
भवरों की मुखर बोली,
सुबह अदाओं वाली…..
(अम्बूटिया चाय बगान में)
मृत्युंजय
१५ जून, २०१४
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