Tuesday, July 8, 2014

सुबह अदाओं वाली











हर ओर नीरवता 
सरसराते, धींगा-मुश्ती करते 
शाख़- पत्ते 
रंगों के विनिमय में लगे 
फूल 
उन सारे, कल के टूटे
दलों को भूल
घाटी में चक्कर काटती
हर दिशा से गुदगुदाती हवा
उनपर लटक कर झूलती
फाहों-सी बादलों की टोली
पक्षियों के वार्तालाप
रह-रह कोई ले रहा आलाप
तितलियों की अठखेली
भवरों की मुखर बोली,
सुबह अदाओं वाली…..

(अम्बूटिया चाय बगान में)
मृत्युंजय
१५ जून, २०१४


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