Friday, November 29, 2013

ले, मेरी साँसों की अंतिम भेंट ले!

धुँध से मैं आ गया हूँ मुक्त होकर 
ले प्रिये तू गोद में समेट ले!
छोड़ आया हूँ जगत का द्वंद्व सारा 
ले मेरी साँसों की अंतिम भेंट ले!

साक्षी हैं तेरे-मेरे बीच पलते
यातना में भी निरंतर भाव फलते,
फूट बिखरे सपनों में प्रेम को लपेट ले,
ले, मेरी साँसों की अंतिम भेंट ले!


(Mrityunjay)

1 comment:

  1. heart rending.....so much pathos...
    all my memories of a day i never will forget ...it is a diary of that...

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