ले, मेरी साँसों की अंतिम भेंट ले!
धुँध से मैं आ गया हूँ मुक्त होकर ले प्रिये तू गोद में समेट ले!छोड़ आया हूँ जगत का द्वंद्व सारा ले मेरी साँसों की अंतिम भेंट ले!साक्षी हैं तेरे-मेरे बीच पलते
यातना में भी निरंतर भाव फलते,
फूट बिखरे सपनों में प्रेम को लपेट ले,
ले, मेरी साँसों की अंतिम भेंट ले!
(Mrityunjay)
heart rending.....so much pathos...
ReplyDeleteall my memories of a day i never will forget ...it is a diary of that...