Friday, November 29, 2013
কি যে আমার পরিনতি
পুর দিন বামাক্ষেপার গান শুনে
কি ভাল লাগে?
কিংবা, রবীন্দ্র সঙ্গীত
শুনে কি পথ হারার ভাগ জাগে?
চেয়ে-চেয়ে আকাশ দিকে
পাই শুধু শূন্য,
নাই বুঝি পাপের গতি
নাই করি কোন পুণ্য।
ভাল-মন্দ -
যেন দাদুর যুগের গল্প,
পুজো-তীর্থ -
যেন আকর্মন্নের প্রকল্প;
আমি যে আছি
তাতে ই বা কার উপকার
আমি যে চলে যাব
ক্ষতি ও বা হবে কত কার?
দগ্ধ বৃদ্ধের মতুন
খাঁ - খাঁ করে দিন
আর চলন্ত খালি ট্রামের মতুন
রাত করে চিত্কার।
ভিক্ষের পাত্র নিয়ে
জ্যোত্সনা নামে শহরে
ছাদ থেকে পড়ে
নালার আবর্জনার হাথ ধরে
ডুবে যায়ে সাগরের গভীরে।
আমি ছুটে-ছুটে
ধরি শুধু ছায়া,
দুই ফোটা জলে ভিজিয়ে
রাখি তার ধবল স্মৃতি,
জানি না
কি যে আমার পরিনতি।
(মৃত্যুঞ্জয়)
কলকাতা
২৫.১১.২০১৩
मेरी छाती पर उगी फसल
अच्छा हुआ
मेरी छाती पर उगी फसल
तुम काट ले गए!
अब वो
ऊँचे दाम पर
किसी मंडी में बिकें
या
साहित्य में पिरोये जाएँ,
किसी नाले से बीनकर
कोई पेट पाले
या
हो जाएँ
गोदामों में पलते
चूहों के हवाले,
कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
पर इन खूँटियों का
मैं क्या करूँ दोस्त?
मेरी छाती पर उगी फसल
तुम काट ले गए!
अब वो
ऊँचे दाम पर
किसी मंडी में बिकें
या
साहित्य में पिरोये जाएँ,
किसी नाले से बीनकर
कोई पेट पाले
या
हो जाएँ
गोदामों में पलते
चूहों के हवाले,
कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
पर इन खूँटियों का
मैं क्या करूँ दोस्त?
जो ना तो
मुझे
बंजर रहने देती हैं
और ना ही
देती हैं
किसी नई फसल का आभास?
खूँटियों से पटी
मेरी छाती
जैसे ठूँठे वृक्ष
की जड़ों में
दीमकों की बामी,
सबको पता है
क्या होने वाला है
दृश्य आगामी।
(मृत्युंजय)
२४.११.२०१३
मुझे
बंजर रहने देती हैं
और ना ही
देती हैं
किसी नई फसल का आभास?
खूँटियों से पटी
मेरी छाती
जैसे ठूँठे वृक्ष
की जड़ों में
दीमकों की बामी,
सबको पता है
क्या होने वाला है
दृश्य आगामी।
(मृत्युंजय)
२४.११.२०१३
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