क्या यही है तेरी दिल्ली?
क्या यही है तेरी दिल्ली?
सूख गयी यमुना में रेंगते काले करैत
राह चलते लोगों पर टूटते तेरे डकैत,
सूख गए प्राण इसके, सूख गयी तिल्ली,
क्या यही है तेरी दिल्ली?
हर किसी के सर पर उधार है, क़र्ज़ है,
तेरे शहर में घूमता हर आदमी खुदगर्ज़ है।
एक-दूसरे का पाँव खींच
उड़ाते सबकी खिल्ली,
क्या यही है तेरी दिल्ली?
जम्हूरियत के नाम पर जिसने बिगाड़े काम सब,
दनदनाती कार में हैं भागते हुक्काम सब,
सतपुरे के भाँट ये
बन गए हैं शेख़चिल्ली,
क्या यही है तेरी दिल्ली?
नोंचते, खरोंचते, वहशी से कुछ दरिन्दे
सभ्यता के नाम पर धब्बे ये काले, गंदे,
क्यूँ नहीं तुम तोड़ते
इनके पावों की फिल्ली?
क्या यही है तेरी दिल्ली?
हममें से ही चुने गए कुछ आदम की संतान ये,
महफूज़ घरों में जा बसे, बन गए भगवान ये।
छोड़ रखे हैं हम पर
अपने आदमखोर कुत्ते-बिल्ली,
क्या यही है तेरी दिल्ली?
-मृत्युंजय -
19.12.12
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