मुझे पता है तेरी चाह
तू हो गया है ग़ुमराह।
चिलचिलाती बालू-राशि पर
निकल कर नंगे पाँव
तू माँगता जीवन से पनाह,
मुझे पता है तेरी चाह
तू हो गया है ग़ुमराह।
गोबर-कीचड़- कादो
हमेशा ही सावन-भादो
जैसी गाँवों की सड़कों पर
उलझनें लादे फँसी एक बैलगाड़ी
पेड़ की फुनगी पर बैठे
चाँद के बगुले से कहती
कोई सूझे, तो बताना मुझे भी राह
मुझे पता है तेरी चाह
तू हो गया है ग़ुमराह।
कौन जाने
कौन किसका काँधा पकड़ कर चल रहा है
हर आदमी बस ढल रहा है
धूप-सा कहीं
तो कहीं चाँदनी-सा
ठहरने को संभल रहा है,
फिसल कर गिर रही आशाएँ
रह-रह कराह,
मुझे पता है तेरी चाह
तू हो गया है ग़ुमराह!
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