Tuesday, October 25, 2016

ज्योति

ज्योति

उमड़ता ज्योति का भँवर
तम को पकड़।
तम, तमस ही शाश्वत
रूप है प्रकृति का
वो धरा हो, व्योम हो
या तल हो
सागरों की तलहटी का।
किन्तु अँधेरा तिलस्मी
भी खोजता है, एक मुट्ठी रश्मि
जिसके असर से देख पाएँ
हम अपने अंदर की नमी,
कहना कठिन है
कौन है इस जगत की जननी -
तमक कर अकड़ा हुआ तम
या फिर ज्योति से पुलकित
एक अगोचर
जीवन का जो भान प्रथम!
हम जीवित-से लोग
हर क्षण जो साँस लेते
ये गति तो
आ नहीं सकती है तम से
प्राण से वंचित
किसी प्राणी अधम से।
इसलिए तो कह रहा हूँ -
भर दो तम को
रश्मियों से
ज्योति से खलखल
उमड़ती उर्मियों से
देख लेने दो अंधेरों को
तनिक जीवन का रूप,

केवल अँधेरा ही नहीं
हम सब में है
एक मुट्ठी धूप
उग रही जो हर तरफ
इस जगह या उस जगह
आदमी के धमनियों के
रक्त में बन कर सुबह। 
ज्योति ही जीवन का परिचय
ज्योति में जीता न संशय,
ज्योति ही पूजा का उपक्रम
ज्योति ही प्राणों का संगम।


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2 comments:

  1. Namaste Sir,
    Aapki likhi kavitaye bahut sundar hai aur inspirational bhi.

    Aapse ek request hai.
    Mere Papa kaafi din se aapki likhi hui ek kavita dhundh rahe hai "Meri Boodhi Ma".

    Maine search ki per sadly mujhe nahi mila.

    Kya aap please apni wo kavita share kar sakte hai?

    Agar aap apne blog page ka link de de, to main wo apne Papa ko dikha paugi.
    Please meri madad kijiye.

    Thank you.

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  2. I will wait for your reply. Thank you Sir.

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