मेरी ज़िन्दगी
करवट बदल रही है अब मेरी ज़िन्दगी
सपनों में जैसे चल रही है मेरी ज़िन्दगी।
ले के उबासी दिन कोई ज्यूँ शाम से कहे
आँखें क्यूँ अपनी मल रही है मेरी ज़िन्दगी।
सबकुछ लुटा पर आसरा जीने का यूँ लिए
क्यूँ ख़ाक पर मचल रही है मेरी ज़िन्दगी।
आज भी गुज़र गया फिर उनकी राह में
हर कल पर टल रही है अब मेरी ज़िन्दगी।
करके उन्हें रोशन न जाने कितनी रातों को
ख़ुद मोम सी पिघल रही है मेरी ज़िन्दगी।
जागे हुए तो हमको कुछ भी नहीं मिला
सोते हुए अब कट रही है मेरी ज़िन्दगी।
- (मृत्युंजय) -
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