बड़ी धुली-धुली सी रात है ये
बारिश की बौछारों से
बहती हुई बयारों से
जैसे धो गया हो कोई
रात पर बिखरी रोशनाई
फिर तुम्हारी याद आई।
बारिश की बौछारों से
बहती हुई बयारों से
जैसे धो गया हो कोई
रात पर बिखरी रोशनाई
फिर तुम्हारी याद आई।
चुपके से झड़ गये हैं
कुछ आम के मंजर
कुछ फूल
जो टहनियों परसूखे लगे थे
आबरू की शाख पर
यूँ ही टँगे थे
अकस्मात्
बिजली और बादलों की धनी
मौसम की खुरदरी एक ओढ़नी
खरोंच गयी हो जैसे
चेहरा यादों का
कसमसाती गुनगुनी
गर्मी से
ऊब रहे वादों का
हथेलियों से
मुँह ढाँके
सीने में क़ैद साँसें
जैसे टटोलती हों
अपनी परछाईं,
फिर तुम्हारी याद आई।
कुछ आम के मंजर
कुछ फूल
जो टहनियों परसूखे लगे थे
आबरू की शाख पर
यूँ ही टँगे थे
अकस्मात्
बिजली और बादलों की धनी
मौसम की खुरदरी एक ओढ़नी
खरोंच गयी हो जैसे
चेहरा यादों का
कसमसाती गुनगुनी
गर्मी से
ऊब रहे वादों का
हथेलियों से
मुँह ढाँके
सीने में क़ैद साँसें
जैसे टटोलती हों
अपनी परछाईं,
फिर तुम्हारी याद आई।
(मृत्युंजय)
Painting by Luise Andersen
No comments:
Post a Comment