Mrityunjay Kumar Singh
Monday, January 12, 2015
देर रात सड़क पर
बस अभी फ़ारिग हुआ, निकला हूँ घर को
सड़क खाली है, चाहे मुड़ लूँ जिधर को।
खला है, जो उड़ रही है हर तरफ़ धुआँ-सा
चमकती रेंगती है रोशनी इक केंचुआ -सा।
सुबह से रिस रहा था जो ज़हर ज़िन्दगी से
कुहासा बन के फैला मिल गले ये तीरगी से।
(मृत्युंजय
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