मृत्युंजय द्वारा रचित 'गंगा रतन बिदेसी' (भारतीय ज्ञानपीठ) भोजपुरी उपन्यास सौ वर्षों की काल-परिधि में घिरी, अपनी ज़मीन से उखड़े हुए लोगों की गाथा है। यह उस दुःख, संताप और संघर्ष की कथा है, जो भोजपुरिया क्षेत्र से विस्थापित होकर गिरमिटिया बने एक व्यक्ति के परिवार और संततियों को फिर से अपनी जड़ खोजने और जमाने के दौरान सहन करना पड़ा। आज भी, अपने देश में, सौ में से दस लोग ऐसे हैं, जो अपनी रोजी-रोटी कमाने या एक अच्छे जीवन के चक्कर में अपनी ज़मीन से प्रताड़ित या निष्कासित जीवन जी रहे हैं। अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी यह बात उतनी ही महत्वपूर्ण है।
यह कथा है उन सब लोगों की जो आपस में एक आंतरिक प्रेम की जिजीविषा से बंधे हैं, और इज़्ज़त से जीने को एक जगह खोज रहे हैं।
इसके लेखक मृत्युंजय स्वयं पश्चिम बंगाल कैडर के एक आई.पी.एस. अधिकारी हैं, जो संप्रति पुलिस महानिदेशक (होमगॉर्ड), पश्चिम बंगाल के पद पर कार्यरत हैं।
मृत्युंजय आधुनिक भोजपुरी लेखन पर चर्चा करते हुए हाज़िर हो रहे हैं ज्ञान भवन, पटना में 1 फरवरी 2019 को पटना लिटरेरी फेस्टिवल का हिस्सा बन कर। यहाँ अपने उपन्यास गंगा रतन बिदेसी के प्रसंगों और संदर्भों पर तो चर्चा होगी ही, साथ ही आप सुन पायेंगे उनका विरल भोजपुरी गायन जो इस उपन्यास का हिस्सा है। जल्द ही यह उपन्यास अपने ऑडियो-पुस्तक के रूप में भी उपलब्ध होगा।
amazon.com पर 'Ganga Ratan Videshi' के टाइटल से यह उपन्यास उपलब्ध है।
आपका स्नेह और सहयोग मेरी प्रेरणा भी है, और साहस भी। ....